Home » Culture » क्या है भोजन विधि का वैज्ञानिक रहस्य?

क्या है भोजन विधि का वैज्ञानिक रहस्य?

भोजन विधि का वैज्ञानिक रहस्य।


शास्त्रों में पैर धोकर तथा एक वस्त्र ऊपर ओढ़कर और फिर पूर्व अथवा उत्तर आदि मुख बैठकर एकान्त में भोजन करना बतलाया गया है, जहां पर अन्य सर्व साधारण की दृष्टि न पड़े।

भोजन पकाने की रसोई व भोजन करने का स्थान पवित्र, गोमय आदि से लिपा हुआ अथवा जल आदि से शुद्ध होना चाहिए । भोजन करने व भोजन पकाने व कराने वाले दोनो पवित्र शुद्ध तन और पवित्र मन वाले होने चाहिए।
कहा गया है। 

“आयुष्यं प्राङ, मुखो भुङ क्ते यशस्यं दक्षिणामुखः।”

अर्थात् आयु की इच्छा वाले को पूर्वमुख तथा यशेच्छुक को दक्षिण दिशा की ओर मुख करके भोजन करना चाहिए। इसका कारण यह है कि पूर्व दिशा से प्राणशक्ति का उदय होता है। सूर्य देवता प्राणस्वरूप हैं, जो इस दिशा से उदय होते हैं। अतः इस पूर्व दिशा की ओर मुख करके भोजन करने से आयु बढ़ेगी।

दक्षिण की ओर पितृ देवताओं का वास रहता है उस ओर मुख करके भोजन करने से यश प्राप्त होता है। प्राणशक्ति पूर्व दिशा में रहने के कारण पूर्व की ओर पैर करके सोने का भी निषेध किया गया है क्योंकि प्राणशक्ति पैरों के द्वारा निकल कर मनुष्य को क्षीण बना देगी।

यह भी पढ़िये :-  पहाड़ी शैली में बने "पठाल" की छत वाले घर उत्तराखण्ड की समृद्ध वास्तुकला के प्रतीक हैं। 

यह विज्ञानसिद्ध है कि मनुष्य के पैरों की ओर से विद्युत्शक्ति और प्राण शक्ति सदा निकला करती है। पैर निकलने का स्थान है और मस्तिष्क तथा शिखा से शक्ति प्रहण की जाती है वह ग्रहण करने स्थान है। इसलिए जो लोग माता पिता गुरुजन आदि के चरणों पर शिर रखकर प्रणाम करते हैं वे अपने माता पिता, यादि के गुण तथा आशीर्वाद इत्यादि जो विद्युत् शक्ति के द्वारा हाथ व पैर से निकलते रहते हैं। मस्तक द्वार से अपने में ग्रहण करते हैं। प्रसन्नता पूर्वक आशीर्वाद देते हुए माता पिता आदि अपना हाथ भी पुत्र आदि के सिर पर रखते हैं इससे भी विद्युत शक्ति के रूप में शुभ भावना प्रवेश कर जाती है पूर्व की ओर मुख करके उपासना करने से भी पूर्व की प्राणशक्ति को उपासक अपनी ओर खींचता रहता है और अपनी शक्ति बढ़ाता है।

यह भी पढ़िये :-  जीवन की पहली किताब उस रोशनी के नाम थी जिसे हम ‘लम्फू’ कहते थे।

पूर्व दिशा की वैज्ञानिक महिमा एवं रहस्य का यत्किचित् वर्णन है।

सिर पर टोपी तथा साफा आदि धारण किये हुये और पैरों में जूता पहने हुये भी भोजन नहीं करना चाहिये। इसका रहस्य यह है कि भोजन करते समय जो क्रिया होती है उससे शरीर में ऊष्मा (गरमी) पैदा होती है। उस के निकलने के दो ही मुख्य मार्ग हैं एक तो सिर और दूसरा पांव। अतः यदि ये दोनों ही बन्द या ढके होंगे तो ऊष्मा निकलने के लिए जोर लगावेगी अतः कुपित होकर सारे शरीर को हानि पहुंचायेगी जिससे स्वास्थ्य की हानि होगी।
पैरों में जूता चर्ममय होने से दुर्गन्धित परमाणु फैलते रहेंगे तथा उष्मा नहीं निकलने पायेगी जबकि कहा गया है कि गीले पैर से भोजन करना चाहिये। भोजन के बाद यह ऊष्मा अच्छी तरह निकल जाय इसीलिए यह भी कहा गया है कि भोजन करने के पश्चात् लघुशंका कर लेनी चाहिए।

इस प्रकार यह सारी क्रियायें विज्ञान की कसौटी पर कस कर ऋषियों ने हमारे लाभ के लिए बनाई हैं।

यह भी पढ़िये :-  रिंगाल मेन राजेन्द्र बडवाल की बेजोड हस्तशिल्प कला, रिंगाल से बनाया उत्तराखंड का राज्य पक्षी मोनाल।

Related posts:

उत्तराखंड में पहाड़ी शैली के सुंदर मकान। Beautiful hill style houses in Uttarakhand.

Culture

सड़क किनारे पहाड़ी सब्जी बेच रहे नितेश सिंह बिष्ट जी स्वरोजगार कर उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था में सीधा...

Culture

बामणी गांव का अनूठा 'नंदालोकोत्सव! बद्रीनाथ मंदिर के पास स्थित है। 

Culture

उत्तराखण्ड पौड़ी गढ़वाल की रहने वाली शशि बनी नमकवाली आंटी जी ने पहाड़ी पिसे नमक को बनाया देश-विदेश म...

Pauri

जीवन की पहली किताब उस रोशनी के नाम थी जिसे हम ‘लम्फू’ कहते थे।

Culture

बाल मिठाई अल्मोड़ा उत्तराखंड की बहुत स्वादिष्ट मिठाई है और बच्चों में भी बहुत लोकप्रिय है।

Culture

भारतवर्ष में यह परंपरा सदियों से चली आई है विशेष अवसरों पर धोती पहनकर एक साथ जमीन पर बैठकर भोजन ग्रह...

Culture

उत्तराखंड के उत्तरकाशी शहर का दृश्य है यहां पर पहले भागीरथी नदी शहर के किनारे होकर गुजरती थी।

Uttarkashi

हमारे बुजर्गो ने ऐसे घर मे अपना जीवन यापन किया है।

Culture

About

नमस्कार दोस्तों ! 🙏 में अजय गौड़ 🙋 (ऐड्मिन मेरुमुलुक.कॉम) आपका हार्दिक स्वागत 🙏 करता हूँ हमारे इस अनलाइन पहाड़ी 🗻पोर्टल💻पर। इस वेब पोर्टल को बनाने का मुख्य उद्देश्य 🧏🏼‍♀️ अपने गढ़ समाज को एक साथ जोड़ना 🫶🏽 तथा सभी गढ़ वासियों चाहे वह उत्तराखंड 🏔 मे रह रहा हो या परदेस 🌉 मे रह रहा हो सभी के विचारों और प्रश्नों/उत्तरों 🌀को एक दूसरे तक पहुचना 📶 और अपने गढ़वाली और कुमाऊनी संस्कृति 🕉 को बढ़ाना है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*
*