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मैं केदार!अब क्या तो कहूं, कहां तो जाऊं ?

बस, अब जो बात बाकी रह गई थी कि गढ़वाल विश्वविद्यालय की शोधार्थी डॉक्टर आयुषी राणा के शोध – “सस्टेनेबल पिलग्रिम् टूरिज्म इन केदार वेली – पोस्ट 2013 डिजास्टर” को भी पढ़िए कि अब केदारनाथ में तीर्थाटन और पर्यटन का अंतर खत्म हो गया है। आपदा से पहले यहां यात्रा में प्रतिदिन चार-पांच हजार लोग आते थे और अब 30 से 35 हजार तक संख्या पहुंच गई। तीर्थ यात्री के बाद पर्यटक और अब यूट्यूबर भी, शूटिंग डेस्टिनेशन बना कर रख दिया है।

और हां, यह स्थिति तब है जब यहां 18 किलोमीटर का पैदल रास्ता है। आगे तो सड़क और रज्जू मार्ग की बात हो रही है। ऐसा हो गया तो प्रतिदिन 50000 लोग होंगे मेरे इस धाम में, बिना बुलाए। उस जगह जहां तुम्हारे पूर्वजों की यह मान्यता रही है कि यहां मैं ध्यान अवस्था में रहता हूं। क्या तुम्हारे पूर्वजों ने बताया नहीं तुम्हें कि मेरी इस केदार भूमि में बिना शोर शराबे के दबे पांव चलना होता है। अब तो पांव की धमा चौकड़ी भी है और भारी शोर शराबा भी। और इस शोर शराबे में भूगर्भ विज्ञान और लोक विज्ञान की बात करना किसकी समझ में आएगा।

यह भी पढ़िये :-  उत्तराखंड मैं पुराने समय के परम्परागत भवन उन्नत इंजीनियरिंग। Traditional House of Uttarakhand.

अरे, पढ़ो कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (एनआईडीएम) की इंडियन डिजास्टर रिपोर्ट 2013 में कुल 19 सिफारिशें की गई हैं। एक सिफारिश में तो कहा गया है कि इस क्षेत्र में “रिस्क जोन” को मानचित्र पर चिन्हित किया जाना चाहिए। नदी तटों के निकट पर्यटन और तीर्थाटन के दबाव को रोकना होगा। यह रिपोर्ट डॉक्टर सत्येंद्र, डॉक्टर के जी आनंद कुमार, वह मेजर जनरल डॉक्टर सी के नायक ने तैयार की थी। पता है क्या ? कहां है तुम्हारी सरकार ?

इसी तरह एक रिपोर्ट वाडिया हिमालय भूगर्भ संस्थान ने भी 2013 की आपदा के बाद तैयार की थी। जिसमें संपूर्ण केदार घाटी को बहुत ही संवेदनशील बताया गया और स्पष्ट कहा गया की भारी निर्माण और यात्रियों व पर्यटकों के दबाव से इस तरह की आपदाओं का खतरा लगातार बढ़ेगा। यह रिपोर्ट “केदारनाथ आपदा तथ्य व कारक” नाम से डॉक्टर डीपी डोभाल, डॉक्टर अनिल गुप्ता, डॉक्टर मनीष मेहता व डॉक्टर डीडी खंडेलवाल ने तैयार की थी। पढ़ी है क्या किसी ने ?

अरे कथित भक्तों! मैं तो पूरे हिमालय में नंगे पैर चलता हूं। खड़ाऊ तक नहीं होती है मेरे पैरों में। मेरी गौरा जिसे तुम नंदा रहते हो, उसका गौरीतीर्थ जिसे तुम गौरीकुंड कहते हो, वह भी तो तुमने उजाड़ दिया है। भक्त हो तो गोरी तीर्थ से पहले जूते चप्पल उतार कर मेरे धाम में आया करो।

यह भी पढ़िये :-  1858 में  लंढौर मसूरी का रंगीन स्केच। पेंटिंग पर लिखा है 'लंढौर हाउस'। Colour sketch of Landour, Mussoorie, 1858. The name on the painting is 'Landour House'.

और अब तो हद ही हो गई है। कल की ही बात है।मेरे धाम की कई हजार मधुमक्खियां तुमने रात में जलाकर मार डाली। उनके चार-पांच घर (छत्ते) जला डाले। अपने ऐसो आराम के लिए चार-चार मंजिल की बिल्डिंग बना रहे हो। मधुमक्खियों के आकाश में स्वतंत्र विचरण के मार्ग में पहले तो तुम्हारे हेलीकॉप्टर और अब यहां चार – चार मंजिला बिल्डिंग की दीवार खड़ी कर रहे हो।

उनके प्राकृतिक आशियाने पहले ही उजाड़ दिए गए और जब तुम्हारी ऊंची बिल्डिंग के छज्जे पर अस्थाई आशियाना बनाया, किसी को कुछ कुछ परेशानी भी नहीं हो रही थी, फिर भी तुमने रात के अंधेरे में उनके छत्ते जला डाले।

अब तो कुछ कहना बनता भी नहीं है। बात समाप्त करता हूं। अब अपने हिसाब से ही निपटूंगा ।

यह भी पढ़िये :-  पुराने लकड़ी के घर आमतौर पर ग्रामीण इलाकों या पहाड़ी क्षेत्रों में पाए जाते हैं।

लो देखो, 2013 के तत्काल बाद की दो फोटो

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