Home » Culture » भ्यूंडार घाटी का नंदाष्टमी पर्व। फुलारी, ब्रहमकमल, दांकुडी और नंदा के जैकारों से जागृत हो उठता है माँ नंदा का थान

भ्यूंडार घाटी का नंदाष्टमी पर्व। फुलारी, ब्रहमकमल, दांकुडी और नंदा के जैकारों से जागृत हो उठता है माँ नंदा का थान

10 सितम्बर से 13 सितम्बर तक होगा भव्य आयोजन। 


हिमालय की अधिष्टात्री देवी माँ नंदा, यहाँ के लोक में इस तरह से रची बसी है कि नंदा के बिना पहाड़ के लोक की परिकल्पना ही नहीं की जा सकती है। नंदा से अगाढ प्रेम की बानगी है कि आज भी लोग खुशी खुशी अपनी बेटी का नाम नंदा रखते हैं। भादो के महीने नंदा के लोकोत्सवों की अलग ही पहचान है। नंदा का पूरा मायका लोकोत्सव में डूबा हुआ है चारों ओर नंदा के जयकारों से नंदा का लोक गुंजयमान है। नंदा को कैलाश विदा करनें और कैलाश से बुलाने की लोकजात्रायें चल पडी है। पुष्पावती और भ्यूंडार गंगा की घाटी में प्रत्येक वर्ष नंदा अष्टमी के अवसर पर आयोजित होने वाला नंदाष्टमी पर्व का आयोजन इस साल 10-13 सितम्बर को होगा।

माँ नंदा के बुलावे के लिए कैलाश भेजे जाते हैं दो फुलारी। 


प्रसिद्ध फोटोग्राफर, प्रकृति प्रेमी, संस्कृति प्रेमी, और जनसरोकारों से जुड़े भ्यूंडार गांव के युवा सौरभ सिंह चौहान बताते हैं कि भ्यूंडार गांव के सभी ग्रामवासी भादों के महीने षष्ठी के दिन मां नंदा देवी के मंदिर में एकत्रित होते हैं और सर्वप्रथम भूमिया देवता की पूजा की जाती है। उसके बाद गांव के समस्त लोग मंदिर प्रांगण में एकत्रित होकर दो फुलारी को माँ नंदा के मायके (कैलाश) बुलावा के लिए भेजे जाते हैं। दोनों फुलारी में एक के पास कंडी में मां नंदा जी का कटारा तलवार शक्ति के रूप में जाता है एवं दूसरी फुलारी की कंडी में लोकपाल जी का कटारा तलवार शिव रूप में जाती है। फुलारी के साथ लक्ष्मण जी का भिंगार मां नंदा के बुलावे के लिए भेजा जाता है। उस दिन फुलारी का रात्रि विश्राम श्री लोकपाल के मंदिर में होता है। अगले दिन प्रातः स्नान के बाद फुलारी श्री लक्ष्मण महाराज और नंदा माता और शेषनाथ जी को भोग लगाने के पश्चात ब्रहमकमल की फुलवारी में प्रवेश करते हैं, जो कि लक्ष्मण मंदिर के समीप है। तत्पश्चात फुलारी मां नंदा की प्रार्थना करके अपने मायके आने के लिए निमंत्रण देते हैं। जिसके बाद दोनों दोनों फुलारी अपनी फूल कंडी का ब्रह्मकमल से श्रृंगार करते हैं। दोपहर को बिना भोजन किए फुलारी नंदा माता के मंदिर के लिए प्रस्थान करते हैं। लक्ष्मण जी का भृंगार उनके आगे साथ साथ चलता है। फुलारी शाम को भ्यूंडार गांव पहुंच जाते हैं, जहां समस्त ग्रामवासी मां नंदा के स्वागत की इंतजारी में रहते हैं।

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जागरों में होती है मां नंदा से वार्तालाप और पूछी जाती है ससुराल की कुशलक्षेम। 


माँ नंदा के भ्यूंडार गांव पहुंचने पर गांव के बुजुर्ग जगरोई जागर के रूप में मां नंदा से उनके कैलाश के कुशलक्षेम पूछते हैं। उसी जागरण में मां नंदा बताती है की कैलाश में बहुत से पुष्प खिले हुए हैं विभिन्न प्रकार के मखमली कमल खिले हुए है। कैलाश में सब कुशलक्षेम से है। फिर मां भगवती जागरण में ग्रामीणों से पूछती है कि मेरे मायके गंगाड में क्या-क्या हो रहा। फिर जगरोई मां नंदा को बताते हैं कि उनके मायके में विभिन्न प्रकार के मौसमी फल और अनाज हो रखा हैं। तत्पश्चात महानंदा का अवतार एक अवतारी पुरुष पर होता है और फिर अपने फुलारी से मिलकर मां नंदा मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश करती है। अंत में नंदा माता समस्त ग्राम वासियों को नंदा अष्टमी सफल करने का आशीर्वाद देती है।

 

विशेष रूप से तैयार होता है माँ नंदा का विग्रह। 


फुलारी के आने से पहले दो विशेष व्यक्तियों द्वारा मां नंदा का विग्रह तैयार किया जाता है जिसमें मां नंदा के मुखारविंद पे समस्त ब्रह्मांड को दर्शाया जाता है। उसी दिन रात्रि में मां नंदा के आगमन के बाद विग्रह को गर्भ ग्रह में स्थापित किया जाता है तत्पश्चात रात्रि में मां का श्रृंगार किया जाता है। अगले दिन ब्रह्म मुहूर्त से पहले तक विग्रह को एक स्वच्छ कपड़े से ढक आया जाता है और ब्रह्म मुहूर्त आने पर मां नंदा के विग्रह से कपड़ा हटाकर समस्त ग्राम वासियों के लिए दर्शनार्थ खोला जाता है। जिसके उपरांत मां नंदा को भोग लगा कर आरती की जाती है।

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दो दिन तक गाये जाते हैं मां नंदा के जागर और दांकुडी की लयबद्ध और कतारबद्ध लोकनृत्य से थिरक उठता है नंदा का मायका, विदाई के अवसर पर छलछला जाती है आंखे। 

भ्यूंडार गांव में नंदा की लोकजात के अवसर पर गांव में 2 दिन तक लगातार जागर चलता रहता है। जिसमें मां नंदा की पौराणिक गाथाओं का वर्णन होता है। इसके पश्चात समस्त ग्रामीण सामूहिक रूप से मां नंदा के पारम्परिक लोकगीतों की सुमधुर स्वरलहरियों के साथ दांकुड़ी मां नंदा के लिए प्रस्तुत करते हैं। उस दिन रात्रि को समस्त ग्रामवासी जागरण करते हैं और अपने भजनों के साथ महानंदा का गुडानुवाद करते हैं। अष्टमी के दिन महानंदा की दाकुड़ी लगाई जाति है और दोपहर को समस्त ग्रामवासी फुलारियो को छोड़ कर भ्यूंडार गांव में स्थित लोकपाल लक्ष्मण मंदिर मे दर्शानों के लिए जाते है। दोपहर का भोग लक्षमण जी को लगाया जाता है। वहां पर भी समस्त ग्रामीण सामूहिक रूप से दांकुडी लगाते है फिर शाम को मां नंदा के प्रांगण मैं एकत्रित हो जाते है, और मां का गुडानुवाद की तयारी प्रारंभ कर देते है। इसके बाद मां नंदा गंगाजल और दुग्ध स्नान करती है और समस्त ग्राम वासियों को आश्वस्त करती है की मैं तुम्हारी रक्षा करूंगी जब भी तुम पे अर्थात् मेरे माइके पे संकट आएगा मैं तुम्हारी रक्षा के लिए प्रतिबद्ध रहूंगी। अंत में माँ नंदा समस्त ग्राम वासियों को आशीर्वाद देकर अपने ससुराल कैलाश वापस लौट जाती है। माँ नंदा की विदाई के अवसर पर समस्त ग्रामीणों और ध्याणियों की आंखों से अविरल अश्रुओं की धारा बहती है। क्योंकि अब ठीक एक साल बाद ही माँ नंदा से भेंट होगी। 

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यहाँ हैं भ्यूंडार घाटी। 

सीमांत चमोली जिले के जोशीमठ ब्लाॅक में गोविंदघाट- हेमकुण्ड मार्ग पर समुद्रतल से लगभग 12 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है भ्यूंडार गांव। कल-कल करते बह रही पुष्पावती नदी, झरनों का सुमधुर संगीत, दूर-दूर तक नजर आते बर्फीले पहाड़, पक्षियों की चहचहाट व दुर्लभ प्रजाति के वन्य जीवों की चहलकदमी घाटी के सौंदर्य में चार चांद लगाते है। गंदमादन’, ‘पुष्पावती’, ‘पुष्प रस’, अलका, ‘भ्यूंडार’, ‘देवद्वार’, ‘वैकुंठ’ आदि नामों से विभिन्न ग्रंथों में इस घाटी का जिक्र हुआ है। प्रकृति नें इस खूबसूरत घाटी पर अपना सब कुछ न्योछावर किया है। फूलों की घाटी, कागभूषंडी झील, सात पहाडियों से घिर पवित्र हेमकुण्ड, लोकपाल मंदिर की थाती है ये घाटी। बरसों से यहाँ के लोगों नें अपनी अनमोल सांस्कृतिक विरासत को संजोकर रखा है। अगर आपको भी कभी मौका मिले तो जरूर पहुंचे भ्यूंडार की लोकजात। 

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